________________
सम्पत्ति, क्षेत्र, भवन बादिपर अपना अधिकार करता है । चोरोके अन्तरग कारणोपर विचार करनेसे ज्ञात होता है कि जब द्रव्यको लोलुपता चढ जाती है, तो तृष्णा वृद्धिगत होती है, जिनसे व्यक्ति येन केन प्रकारेण धनसचय करनेवी और झुकता है। यहां विवेक और ईमानदारोके न रहने से व्यक्ति अपनी प्रामाणिकता वो बैठता है, जिसमें उने अनेतिकरूपमे धनार्जन करना पडता है ।
अपव्यय चोरी करना भी निकलता है। एक बार हाथके खुल जाने पर फिर अपनेको नयमित रगना कठिन हो जाता है। अपव्ययी के पास घन स्थिर नहीं रहता और वह निर्धन होकर चौकी ओर प्रवृत्त होता है । कुछ व्यक्ति मान-प्रतिष्ठा हेतु धनव्यय करते हैं और अपनेको वडा दिसलाने के प्रयास व्ययं यं करते है परिणामस्वरूप उन्हें अनीति और शोषणको अपनाना पहना है । अतएव सम्पति सम्मान कर्तव्यका आचरण करते हुए चिन्ता, उद्विग्नता निराना, बोध, लोभ, माया आदिले वचनेका भी प्रयास करना चाहिए ।
परिवारके प्रति सम्मान
परिवारके प्रति सम्मानका अर्थ है पारिवारिक समस्याओके सुलझाने के लिए विवाह बादि कार्यों का नम्पन्न करना । मन्यास या निवृत्तिमार्ग वैयक्तिक जीवनोत्थान के लिए आवश्यक है, पर गंमारके बीच निवास करते हुए पारिवारिक दायित्वका निर्वाह करना ओर समाज एवं सघको उन्नतिके हेतु प्रयत्नशील रहना भी आयक है । वास्तवमे श्रावक जीवनका लक्ष्य दान देना, देवपूजा करना और मुनिधर्मके सरक्षणमं सहयोग देना है । साधु-मुनियोको दान देने की क्रिया श्रावक - जीवन के बिना सम्पन्न नही हो सकती। नारीके बिना पुरुष और पुरुष के बिना अंत्री नारी दानादि क्रिया सम्पादित करने मे असमर्थ है। अत चतुविध सघके सरक्षण एवं कुलपरम्पराके निर्वाहकी दृष्टिमे पारिवारिक कर्तव्योका निर्वाह अत्यावश्यक है । सातावेदनीय और चाग्निमोहनीयके उदयसे विवहन - कन्यावरण विवाह कहलाता है । यह जीवनमे धर्म, अर्थ, काम आदि पुरुषार्थीका नियमन करता है । अतएव पारिवारिक कर्त्तव्य तथा सस्कारोके प्रति जागरुकता अपेक्षित है ।
• सस्कारशब्द धार्मिक क्रियाओं के लिए प्रयुक्त है । इसका अभिप्राय वाह्य धार्मिक क्रियाओ, व्यर्थ आडम्बर, कोरा कर्मकाण्ड, राज्य द्वारा निर्दिष्ट नियम एव औपचारिक व्यवहारोसे नही है; बल्कि आत्मिक और आन्तरिक सौन्दर्य से
नोर्थंकर महावीर और उनकी देशना ५६३