________________ 458 जैन पूजा पाठ सप्रह * आरती इह विधि मंगल आरती कीजे, पच परमपदभज सुख लीजे / टेक / पहली आरती श्री जिनराजा, भवदधि पार उतार जिहाजा / यह / दूसरी आरती सिद्धन केरो, सुमरन, फरत मिटे भव फेरो। यह० / तीजी आरती सूर मुनिन्दा, जनम मरण दुःख दूर करिन्दा / यह / चौथी आरती श्री उवज्झाया, दर्शन देखत पाप पलाया / यह / पाची आरती साधु तिहारी, कुमति विनाशन शिव अधिकारी॥ छट्ठी ग्यारह प्रतिमा धारी, श्रावक बन्दी आनन्दकारी / यह० / सातवीं आरती श्री जिनवाणी, 'धानत' स्वर्ग मुक्ति सुखदानी / सध्या करके आरती कीजे, अपनो जनम सफल कर लीजे / जो कोई आरती करे करावे, सो नर नारी अमर पद पावे // * चौबीसों भगवान की आरती * पभ अजित संभव अभिनन्दन, सुमति पदम सुपार्श्व की जय हो। जिनराजा, दीनदयाला, श्री महाराज की आरती / टेक। चन्द्र पहुप शीतल श्रेयाशा, वासुपूज्य महाराज की जय हो। जिन विमल अनन्त धर्म जस उज्ज्वल, शान्तिनाथ महाराज की जय हो / जिन कुंथुनाथ, अरि, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमिनाथ महाराज की जय हो / जिन नेमिनाथ प्रभु पार्श्व शिरोमणि, वर्धमान महाराज की जय हो। जिन जिन चौबीसों की आरती करो, म्हारो आवागमन, म्हारो जामण मरण मिटावो महाराज जी, जय हो जिनराजा, दीनदयाला श्री महाराज की आरती।