SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६ सित भादव चौदशि लीनो, निरवार सुधान प्रवीनों । पुर चपा थानकसेती, हम पूजत निज हित हेती ॥ ५ ॥ जैन पूजा पाठ सप्रद - ॐ ही श्री माद्रपद शुक्लचतुर्दश्या मोसमगलप्राप्ताय श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला दोहा - चपापुर मे पचवर, कल्याणक तुम पाय सत्तर धनु तन शोभनो, जे जे जे जिनराय ॥ १ ॥ - छन्द मोतियादाम वर्ण १२ महासुख सागर आगर ज्ञान, अनंत सुखामृत भुक्त महान् । महाबल - मडित खडत - काम, रमा - शिव - संग सदा विसराम ॥ सुरिंद फनिंद खर्गिद नरिंद, मुनिंद जजे नित पादरविद । प्रभु तुव अन्तर भाव विराग, सुबालहते व्रत - शीलसो राग ॥ कियो नहिं राज उदास-सरूप, सुभावन भावत आतम रूप । अनित्य शरीर प्रपच समस्त, चिदातम नित्य सुखाश्रित वस्त ॥ अशर्न नही कोउ शर्न सहाय, जहांजिय भोगत कर्म - विपाय | निजातमके परमेसुर शर्न, नही इनके विम आपद - हर्न ॥ जगत्त जथा जलबुदबुद येव, सदा जिय एक लहे फलमेव । अनेक प्रकार धरी यह देह, भ्रमें भव - कानन आन न नेह ॥ अपावन सात कुधात भरीय, चिदातम शुद्ध - सुभाव धरोय । धरै इनसो जब नेह तबेव, सुभावत कर्म तबे वसुभेव ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy