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उत्तम देश सुसगति दुर्लभ, धावफफुल पाना। दुर्लभ नम्यक दुर्लभ संगम, पञ्चम गुण ठाना ॥ २४॥ दुलंभ रजत्रय अाराधन दीक्षा का धरना । दुलंभ मुनिवर को प्रत पालना न भाव परना ।। दुर्लभ में दुर्लभ है चेतन, बोधिज्ञान पावै । पाफर चिरतान नहीं फिर, इस भव मे आव ।। २५ ।।
१२ धर्म नावना। पट दरशन अन वीर नास्तिक ने, जग को लूटा । भूना ना और गुमनाद का, मजहब भूठा ।। हो सुरमा सय पाप का सिर, करता ऐ लाव। फोई दिन कोई परता से, जग मे भटकारे ।। २६ ।। वीतराग सवंश दोप चिन, नीजिन की वानी । मात तत्य का वर्णन जाम, नरको सुखदानी ।। इनमा चितवन बार-बार पर. असा उर धरना । 'मगत' हमी जतनतं दिन, भवसागर तरना ॥ २७ ।। पति नुतनपुर निवासी मगतराबजीयत बारह भावना समाप्त ।
वर्णी-वाणो की डायरी से • गन को शुद्धि यिना गाय शुद्धि का कोई महत्व नहीं । • जो मनुष्य में मनुष्यपने को दुलगता की ओर देखता है, वही ससार मे पार होने का उपाय अपने आप मोज लेता है।