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________________ ५१२ जैन पूजा पाठ समह ९ निर्जरा भावना । ज्यों सरवर जल रुका सूखता, तपन पडै भारी । सवर रोकै कर्म निर्जरा, है सोखनहारी ॥ उदय भोग सविपाक समय, पक जाय आम डाली । दूजी है अविपाक पकावे, पालविषै माली ॥ २० ॥ पहली सबके होय नहीं, कुछ सरै काम दूजी करें जु उद्यम करके, मिटै जगत संवर सहित करो तप प्रानी, मिलै मुकत रानी । इस दुलहिन की यही सहेली, जाने सब ज्ञानी ॥ २१ ॥ १० लोक भावना । तेरा । फेरा ॥ लोक अलोक आकाश माहि थिर, निराधार जानो । पुरुषरूप कर कटी भये षट्, द्रव्यनसो मानों ॥ इसका कोइ न करता हरता, अमिट अनादी है । जीवरु पुद्गल नाचै यामें, कर्म उपाधी है ॥ २२ ॥ पाप पुन्यसों जीव जगत में, नित सुख दुःख भरता । अपनी करनी आप भरै शिर, औरन के धरता ॥ मोहकर्म को नाश मेटकर, सब जग की आसा । निज पद मे थिर होय, लोक के, शीश करो बासा ॥ २३ ॥ ११ बोधिदुर्लभ भावना । दुर्लभ है निगोद से थावर, अरु नरकाया को सुरपति तरसे, सो सगति प्रानी । दुर्लभ प्रानी ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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