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________________ [ ३७८ जैन पूजा पाठ सग्रह किये हम ॥ पनवीस जु मेद भये इम इनके वश पाप निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई । फिर जागि विषय वन घायो. नानाविध विव- फल खायो || कियेऽहार निहार विहारा, इनमें नहिं जतन विचारा | विन देखी घरी उठाई, विन शोधी त्रस्तु जु खाई ॥ तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो । कछु सुधि बुषि नाहिं रही हैं, मिथ्या मति छाय गयी है । मरजादा तुम टिंग लीनी, ताहमें दोष जु कीनी । भिनभिन अब कैसे कहिये, तुम ज्ञानविषै सब पहये ॥ हा हा ! मैं दुठ अपराधी, त्रस - जीवन -राशि विराधी । थावरकी जतन न कीनी, उरमे करुना नहिं लीनी ॥ पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागां चिनाई पुनि विन गाल्यो जल ढोल्यो, पंखातें पवन विलोल्यो || हा हा । मैं अदयाचारी बहु हरितकाय जु विदारी । तामधि जीवनके खंदा, हम खाये धरि आनंदा || हा हा ! परसाद बसाई, विन देखे अगनि जलाई । तामध्य जीव जे आये. ते हु परलोक सिधाये ॥ वीध्यो अन रात पिसायो, ईधन बिन सोध जलायो । भाइ ले जागा बहारी, चिंउटी आदिक जीव विदारी । जल छानि जिवानी कीनी, सो हु पुनि डारि जु दीनी । नहिं जल- थानक पहुँचाई, किरिया विन पाप उपाई ॥ जल मल मोरिन गिरवायो, कृमि कुल बहु घात करायो । नदियन बिच चीर धुवाये, कोसनके जीव मराये || अस्मादिक शोध कराई, गमैं जु जीव निसराई । •
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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