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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह प्रभुतन पर्वतपरस पवन उर में निवहै है । तासों ततछिन सकल रोगरज बाहिर है है ॥ जाके ध्यानाहूत बसो उर अम्बुज माहीं । कौन जगत उपकार करन समरथ सो जनम जनम के दुःख सहे सब ते तुम याद किये मुझ हिये लगें आयुध से तुम दयाल जगपाल स्वामि में शरण जो कछ करनो होय करो परमाण वही है ॥ ११ ॥ मरन सँमय तुम नाम मन्त्र जीवकतैं पायो । पापाचारी श्वान प्राण तज अमर कहायो || जो मणिमाला लेय जपै तुम नाम निरन्तर । इन्द्र सम्पदा लहै कौन संशय इस अन्तर ॥१२॥ जो नर निर्मल ज्ञान मान शुचि चारित साधै । अनवधि सुखकी सार भक्ति कूची नहिं लाधै ॥ सो शिववांछक पुरुष मोक्षपट केम उधारै । मोह मुहर दिढ करी मोक्ष मन्दिर के द्वारे ॥ १३ ॥ शिवपुर केरो पंथ पापतमसों अति छायो । दुःखसरूप बहु कूप खाड सों विकट बतायो ॥ स्वामी सुख सों तहां कौन जन मारग लागें । प्रभु प्रवचनमणिदीप जोन के आगें आगें ॥१४॥ ३६० नाहीं ॥ १० ॥ जानो । I मानो ॥ गही है ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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