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________________ चैन पूजा पाठ सग्रह एकीभाव स्तोत्र भाषा दोहा-वादिराज सुनिराजके, चरणकमल चितलाय । भाषा एकीभाव की, करू स्वपरसुखदाय ॥१॥ पाल-"अहो जगत गुरुदेव सुनियो अर्ज हमारी" जो अति एकीक्षार भयो मानो अलिवारी।। लो मुल कर्ल प्रबन्ध करत भाभव दुःख भारी ॥ ताहि तिहारी भक्ति जगतरवि जो निरवारै । तो अब और कलेश कौल सो नाहि विदारै ॥ १॥ तुल जिल जोतिस्वरूप दुरित अंधिधारि निशरी। लो गणेश गुरु कहैं तत्व विद्याधन धारी॥ मेरे चितघर माहिं वलौ तेजोमय यावत । पापतिलिर अवकाश तहां तो क्योंकरि पावत ॥ २ ॥ आलन्द ऑसूबदत धोय तुलसों चित लाने । गदगद सुरतों सुघश मन्त्र पदि पूजा ठाने । ताके बहविधि व्याधि व्याल चिरकाल निवासी। भाजै थालक छोड़ देह वांनइ के वासी ॥३॥ दिविसे आवनहार भये भविभाग उदयबल । पहले ही सुर आय कनकलय कीय लहीतल !} भलगृह ध्यान दुवार आय निवसो जगनामी । जो सुवरण तन करो कौन यह अचरज स्वामी ॥ ४ ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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