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जैन पूजा पाठ सप्रह
पद्धडी छन्द ।
प्रभु तुम शरीर दुति रतन जेम, परतापपुञ्ज जिम शुद्ध हेम । अतिधवल सुजस रूपा समान, तिनके गढ़ तीन विराजमान ॥ सेवहिं सुरेन्द्र कर नमत भाल, तिन शीश मुकुट तज देहिं भाल । तुम चरणलगत लहलहैं प्रीति, नहिं रमहि और जन सुमन रीति ॥ प्रभु भोगविमुख तन गरमदाह, जन पार करत भवजल निवाह | ज्यों माटी कलश सुपक्क होय, ले भार अधोमुख तिरहि तोय || तुम महाराज निरधन निराश, तज विभव विभव सब जग प्रकाश । अक्षर स्वभाव सुलिखे न कोय, महिमा भगवन्त अनन्त सोय || कर कोप कमठ निज वैर देख, तिन करी धूलि वर्षा विशेष | प्रभु तुम छाया नहि भई हीन, सो भयो पापि लंपट मलीन || गरजन्त घोर घन अन्धकार, चमकन्त विज्जु जल मुसलधार । चरषन्त कमठ घर ध्यान रुद्र, दुस्तर करन्त निज भव समुद्र || वास्तु छन्द | मेघमाली मेघमाली आप बल फोरि
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भेजे तुरत पिशाचगण, नाथ पास उपसर्ग कारण । अग्नि जाल झलकन्त मुख धुनि करत जिमि मत्तवारण ॥ कालरूप विकराल तन, मुण्डमाल हित कण्ठ । चौपाई |
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तुम चरणकमल तिहुँकाल, सेवहिं तज माया जजाल । भाव भगतिमन हरष अपार, धन्य-धन्य जग तिन अवतार ॥ भवसागर में फिरत अजान, मैं तुव सुजस सुन्यो नहिं काने । जो प्रभु नाम मन्त्र मन धरै तास विपति भुजगम डरे ॥