________________
३५०
पट्पद
बेन पूजा पाठ सह
मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल कारें । तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्भुत अति धारें || काल- वरन विकराल, कालवत सनमुख आवै । ऐरावत सो प्रवल सकल जन भय उपजावै ॥ देखि गयंद न नय करें तुम पद- महिमा छीन । विपतिरहित संपतिसहित वरतै भक्त अदीन ॥ अति मद-मत्तगयंद कुंभल नखन विदारे | मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारै ॥ सांकी दाढ विशाल वदनमें रसना लोलै । भीम भयानक रूप देखि जन थरहर डोलै ॥ ऐसे मृगपति पगतले जो नर आयो होय | शरण गये तुम चरणकी बाधा करें न सोय || प्रलय-पवनकर उठी आग जो तास पटंतर । चमै फुलिंग शिखा उतंग पर जलें निरंतर || जगत समस्त निगल्ल भस्मकर हैगी मानों । तडताट दव-अनल जोर चहंदिशा उठानो ॥ सो इक छिनमें उपशमें नाम-नीर तुम लेत | होय सरोवर परिन में विकसित कमल समेत ॥ कोलिल-कंठ - समान श्यामतन क्रोध जलंता । रक्त-नयन फुंकार नार विप-कण उगलंता ॥ फणको ऊंचो करै वेग ही सन्मुख धाया । तव जन होय निशंक देख फणिपतिको आया ॥ जो चांपे निज पगतले व्यापै विष न लगार ।