________________
१६
जैन पूजा पाठ सग्रह
इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान । अपनो विरद निहारिक, कीजै आप समान ॥१८॥ तुमरी लेक सुदृष्टित, जग उतरत है पार । हाहा इत्यो जात हों, लेक निहार निकार ॥१६॥ जो में कहहूँ औरसों, तो न सिटै उरझार ।
लेरी तो तोलों बनी, तातें करों पुकार ॥२०॥ __ वन्दौं पांचो परमगुरु, सुर गुरु वन्दत जास। विधन हरण लाल करण, पूरण परम प्रकाश ॥२१॥ चौवीसों जिनपद लमों, नमों शारदा माय । शिवमग साधक लाधु नलि, रच्यो पाट सुखदाय ॥२२॥
पुप्पावलि दिपेत् । श्री शान्तिनाथ स्तुति
मत्तगयन्द ( सवैया ) शांतिजिनेश जयौ जगतेश, हरै अघताप निशेशकी नाई। सेवत पाय सुरासुरराय, नमै शिरनाय महीतलताई ॥ मौलि लगे मनिनील दिपे, प्रभुके चरणों झलके वह झांई। सूचन पाय-सरोज-सुगन्धिकिधौ चलि ये अलिपङ्कति आई ॥