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________________ ८८ केन पूजा पाठ प्रद भजन-होनहार वलवान नर होनहार होतव्य, न तिल भर टरती । भई जरदकवर के हाथ मौत गिरिधर की । श्री नेमिनाथ जिन आगम यह उच्चारी। भई बारह वर्ष विनाशि द्वारिका सारी ॥ बचे फकत श्री बलभद्र और गिरिधारो। गये निकलि देश से कथ तृषा अधिकारी ॥ भये निद्रावश वन बीच निवृत्ति हरि की। भई जरदकवर के हाथ मौत गिरिधर को ॥ बलभद्र भरन गये नीर न नियरे पाया । धरि भेष शिकारी जरदकंवर तह आया । लखि पीताम्बर पट पीत पन हरषाया । तब मृगा जानि यदुवश ने वाण चलाया ।। लागत ही तीर उठि वोर पोर तरकस की। भई जरदकुंवर के हाथ मौत गिरिधर. को ॥ चित चकित होत चहुँ ओर निहारे वन मे । किन मारा बैरी वाण प्राय इस वन मे॥ यह वचन सुनत यदुकंवर बिलखते मन में । सनाथ जिन वचन लखे ग मन में ॥ होनी से शक्ति न होवे गणधर मुनि की। भई जरदकुंवर के हाथ मौत गिरिधर की ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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