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जन पूजा पाठ सप्रद
रणपाल कुँवर के पड़ी थी पाँव मे वेरी । उस वक्त तुम्हें ध्यान मे ध्याया था मवेरी ॥ तत्काल ही सुकुमाल की सब झड पडी बेरी। तुम राजकुंवर की सभी दुःख द्वन्द निवेरी । हे दीन० ।। १८ ।। जब सेठ के नन्दन को डसा नाग जु कारा । उस वक्त तुम्हे पीर में धर धीर पुकारा ।। तत्काल ही उस वाल का विष भूरि उतारा । चह जाग उठा सोके मानो सेज सकारा ॥ हे दीन० ॥ १६ ॥ मुनि मानतुग को दई जव भूप ने पीरा। ताले मे किया चन्द भरी लोह जजीरा ।। मुनीश ने आदीश की थुति की है गम्भीरा । चक्रेश्वरी तव आन के झट दूर की पीरा ॥ हे दीन० ॥ २० ॥ शिवकोटि ने हट था किया समन्तभद्र सों। शिवपिण्ड को बन्दन करो शङ्को अभद्र सों। उस वक्त स्वयम्भू रचा गुरु भाव भद्र सों। अतिमा जहा जिन चन्द्र की प्रगटी सुभद्र सों ।। हे दीन० ।। २१ ॥ सूवे ने तुम्हें आन के फल आम चढाया। मेंढक ले चला फूल भरा भक्ति का भाया। तुम दोनों को अभिराम स्वर्ग धाम वसाया। हम आपसे दातार को लख आज ही पाया । हे दीन० ।। २२ ।। कपि, श्वान, सिंह. नवल, अज, बैल विचारे । तिर्यञ्च जिन्हें रश्च न था बोध चितारे ।। इत्यादि को सुरधाम दे शिवधाम में धारे । प्रभु आपसे दातार को हम आज निहारे । हे दीन० ॥ २३ ।।