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जब सेठ सुदर्शन को मृषा दोष लगाया। रानी के कहे भूप ने शूली पै चढाया ।। उस वक्त तुम्हें सेठ ने निज ध्यान मे ध्याया। शूली से उतार उसको सिंहासन पै बिठाया । हे दीन० ॥ १२ ॥ जब सेठ सुधन्नाजी को वापी मे गिराया। ऊपर से दुष्ट था उसे वह मारने आया ।। उस वक्त तुम्हें सेठ ने निज ध्यान मे ध्याया। तत्काल ही जञ्जाल से तब उसको बचाया ।। हे दीन० ।। १३ ।। इक सेठ के घर मे किया दारिद्र ने डेरा । भोजन का ठिकाना नहीं था साझ सवेरा ।। उस वक्त तुम्हें सेट ने जब ध्यान मे घेरा। घर उसके मे तब कर दिया लक्ष्मी का बसेरा ।। हे दीन० ।। १४ ॥ बलि वाद मे मुनिराज सो जब पार न पाया। तब रात को तलवार ले शठ मारने आया । मुनिराज ने निज ध्यान से मन लीन लगाया। उस वक्त हो प्रत्यक्ष तहाँ देव बचाया ।। हे दीन० ।। १५ ।। जब राम ने हनुमन्त को गढ लङ्क पठाया। सीता की खबर लेने को सह सैन्य सिधाया ।। मग बीच दो मुनिराज की लख आग मे काया । झट वार मूसलधार से उपसर्ग बुझाया ।। हे दीन० ॥ १६ ॥ जिननाथ ही को माथ नवाता था उदारा । धेरे मे पडा था वो कुम्भकरण विचारा ।। उस वक्त तुम्हें प्रेम से सङ्कट मे उचारा। रघुवीर ने सब पीर तहा तुरत निवारा ।। हे दीन० ॥ १७ ॥