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________________ | 1 २८२ जैन पूजा पाठ सग्रह धर्म धरै दशलाक्षणी, भावें भावना वार | सहैं परीषह बीस द्व, चारित - रतन भण्डार || ते गुरु० || ६ || जेठ तपे रवि आकरो, सूखे सर वर नीर । शैल - शिखर मुनि तप तपै दा 1 नगन शरीर || ते गुरु० ॥ ७ ॥ जलधर धार । पावस रैन डरावनी, बरसै तरुतल निवसे तव यती, चालै झझा व्यार ॥ ते गुरु० ॥ ८ ॥ शीत पडे कपि-मद गले, दाहै सब वनराय । तालतरगनि के तटै ठाडे ध्यान लगाय ।। ते गुरु० ॥ ९ ॥ 1 इहि विधि दुद्धर तप तपै, तीनो काल मकार | लागे सहज रूप में, तनसो ममत निवार ॥ ते गुरु० ॥ १० ॥ पूरव भोग न चिन्तवै, आगम वांछे नाहि । चहुँ गतिके दुःख सौ डरे, सुरति लगी शिवमाहिं । ते गुरु० ॥। ११ ॥ 1 रङ्गमहल मे पौढते, कोमल सेज बिछाय । ते पच्छिम निशि भूमि मे, सोवै सवरि काय || ते गुरु० ॥ १२ ॥ गज चढ़ि चलते गवंसो, सैना सजि चतुरङ्ग । निरखिनिरखि पग वे वरै, पालै करुणा अङ्ग ॥ ते गुरु० ॥ १३ ॥ वे गुरु चरण जहा घरै जग मे तीरथ जेह । सो रज मम मस्तक चढो, 'भूधर' मागे एह || ते गुरु० ॥ १४ ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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