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जैन पूजा पाठ सग्रह
धर्म धरै दशलाक्षणी, भावें भावना वार |
सहैं परीषह बीस द्व, चारित - रतन भण्डार || ते गुरु० || ६ ||
जेठ तपे रवि आकरो, सूखे सर वर नीर ।
शैल - शिखर मुनि तप तपै दा
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नगन शरीर || ते गुरु० ॥ ७ ॥
जलधर धार ।
पावस रैन डरावनी, बरसै तरुतल निवसे तव यती, चालै झझा व्यार ॥ ते गुरु० ॥ ८ ॥
शीत पडे कपि-मद गले, दाहै सब वनराय ।
तालतरगनि के तटै ठाडे ध्यान लगाय ।। ते गुरु० ॥ ९ ॥
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इहि विधि दुद्धर तप तपै, तीनो काल मकार |
लागे सहज रूप में, तनसो ममत निवार ॥ ते गुरु० ॥ १० ॥
पूरव भोग न चिन्तवै, आगम वांछे नाहि ।
चहुँ गतिके दुःख सौ डरे, सुरति लगी शिवमाहिं । ते गुरु० ॥। ११ ॥
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रङ्गमहल मे पौढते, कोमल सेज बिछाय ।
ते पच्छिम निशि भूमि मे, सोवै सवरि काय || ते गुरु० ॥ १२ ॥
गज चढ़ि चलते गवंसो, सैना सजि चतुरङ्ग । निरखिनिरखि पग वे वरै, पालै करुणा अङ्ग ॥ ते गुरु० ॥ १३ ॥
वे गुरु चरण जहा घरै जग मे तीरथ जेह ।
सो रज मम मस्तक चढो, 'भूधर' मागे एह || ते गुरु० ॥ १४ ॥