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ॐ ही अष्टाङ्गसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय भवातापविनाशनाय चन्दनं
शालि अखंडित लीजिये, कंचन थाल भराय । जिनपद पूजों भावसों, अक्षत पदको पाय ॥ क्षमा ॐ ह्रीं अष्टानसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविघसम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान्
पारिजात अरु केतकी, पहुप सुगंध गुलाव | श्रीजिन-चरण सरोजकुं, पूज हर्ष चितचाव || क्षमा * ही अष्टाम्यदर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविधसम्यकुचारित्राय रत्नत्रयाय कामवाणविध्वसनाय पुष्प
शकर घृत सुरभीतना, व्यंजन पटरस स्वाद । जिनके निकट वढायकर, हिरदे धरि आह्लाद ॥ चूमा ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय सुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं
होटेकमय दीपक रचो, वाति कपूर सुधार ।
शोधित घृत कर पूजिये, मोह - तिमिर निरवार | क्षमा ॐ ह्रीं अांगसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यरज्ञानाय त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं कृष्णागर करपूर हो, अथवा दशविधि जान । जिन चरणन ढिग खेड़ये, अष्ट-कर्मकी हान | क्षमा ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविवसम्यक् चारित्राय रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं
केला अंब अनार ही नारिकेल ले दाख । अग्र धरो जिनपदतने, मोक्ष होय जिन भाख ॥ क्षमा ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविधसम्यक् चारित्राय रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं
जले फल आदि मिलायके, अरध करो हरपाय | दुःख जलांजलि दीजिये, श्रीजिन होय सहाय ॥ क्षमा ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय, अष्टविघसम्यग्ज्ञानाय, त्रयोदशविधमम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय अनवेपदमाप्तये अर्ध