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________________ जैन पूजा पाठ सप्रह क्षमावणी-पूजा [कवि मल्लजी] छप्पय अंग क्षमा जिन-धर्मतनो दृढ़-मृल वखानो। सम्यक रतन सँभाल हृदयमे निश्चय जानो ।। तज मिथ्या विष-मूल और चित निर्मल ठानो । जिनधर्मीसो प्रीत करो सब पातक भानो । रत्नत्रय गह भविक-जन जिन-आज्ञा सम चालिये। निश्चय कर आराधना करम-रासको जालिये ।। ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रय अत्र अवतर अवतर संवौपट । ॐ ह्रीं सम्यकरत्नत्रय । अत्र तिष्ठ तिष्ट ठ ठ । ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रय । अत्र मम सन्निहितं भव भव वपट् । नीर सुगंध सुहावनो, पदम-द्रहको लाय । जन्म-रोग निरवारिये, सम्यक्रतन लहाय ।। क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय । ॐ ह्रीं निशंकितागाय नि काक्षितागाय निर्विचिकित्सतांगाय निर्मूढतांगाय उपगृहनागाय सुस्थितीकरणाङ्गाय वात्सल्यांगाय प्रभावनाङ्गाय जन्ममृत्युविनाशनाय सम्बग्दर्शनाय जलं ॐ ह्रीं व्यंजनव्यजिताय अर्थसमग्राय तदुभयसमग्राय कालाध्ययनाय उपाध्यानोपहिताय विनयलब्धिप्रभावनाय गुरुवाधाह्नवाय बहुमानोन्मानाय अष्टाङ्गसस्यग्ज्ञानाय जल निर्वपामीति स्वाहा । ॐ ह्री अहिसामहाव्रताय सत्यमहाव्रताय अचौयमहानवाय ब्रह्मचर्यमहाव्रताय अपरिग्रहमहात्रताय सनोगुप्तये वचनगुप्तय कायगुप्तये ई-समितये भाषासमितये ऐषणासमितये आदाननिक्षेपणसमितये प्रतिष्ठापनसमितये त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ केसर चंदन लीजिये, संग कपूर घसाय । अलि पंकति आवत घनी. वास सुगंध सुहाय || क्षमा
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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