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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह २२९ द्रव्यैरनल्प घनसारचतुःसमायै रामोदवासितसमस्तदिगन्तरालैः । मिश्रीकृतेन पयसा जिनपुंगवानां, त्रैलोक्यपावनमहं स्नपनं करोमि ॥ मन्त्रमें 'जलेनाभिपिचे' की जगह 'सुगन्धजलेन' पढें । केशर कर्पूरादि सुगन्धित पूर्ण कलशाभिषेक । पीछे 'उदकचन्दनादि' वोल कर अर्घ चढ़ाना । ___ इष्टमनोरथशतैरिव भव्यपुंसां, पूणैः सुवर्णकलशैनिखिलैवसानैः। संसारसागरविलंघन हेतुसेतुमाप्लावये त्रिभुवनैकपतिं जिनेन्द्रम् ॥ श्लोक-श्रीमन्नीलोत्पलामोदैराहता भ्रमरोत्कटैः । ___ गन्धोदकैजिनेन्द्रस्य पादाभ्यर्चनमारंभे ।। पूरा अभिषेक मन्त्र वोल कर वाकी बचे हुए समस्त कलशोंसे भगवान का अभिषेक करना चाहिये। अथ गन्धोदक धारण मुक्ति श्री वनिताकरोदकमिदं पुण्यांकुरोत्पादकं । नागेन्द्रत्रिदशेन्द्रचक्रपदवी राज्याभिषेकोदकं ॥ सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनलता संवृद्धि सम्पादकं । कीर्तिश्री जयसाधकं तव जिन ! स्नानस्य गन्धोदकं श्लोक-निर्मलं निर्मलीकरणं पावनं पापनाशनम् । जिनगन्धोदकं वन्दे अष्टकर्मविनाशकम् ॥ इसको पढ कर गन्धोदक अपने मस्तक पर लगाना चाहिये।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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