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________________ प्रायोभिरेभिः पृथुभिरपि फलै रेभिरीशैर्यजामि ॥ १६ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमदेवाय श्रीअहं परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा | दूरावनम्रसुरनाथ किरीटकोटी संलग्नरत्त किरणच्छविधूसरांघ्रिम् । प्रस्वेदतापमलमुक्तमपि प्रकृष्टैर्भक्त्या जलै जिनपतिं बहुधाभिषिंचे ॥ २० ॥ ॐ ह्रीं श्री भगवन्त कृपालसन्त श्रीवृषभादि वोर पर्यन्त चतुविशति तीर्थंकर परमदेव जिनामिषेक नमये आये आये जम्मूद्वीपे भरतक्षेत्र आर्यखण्डे नाम्नि नगरे पक्षे पर्वणि शुभ माने तिथौ वासरे मुनि मानान। नासोसमे यायिक निरुणा श्रावक श्राविकाणा नन्कर्मक्षयार्थं जलेनाभिसिंचेति स्वाहा। यह जन्त्र पडकर भगवान के ऊपर शुद्ध जल की धारा देनी चाहिये । उदकचन्दनतन्दुलपुष्पकैश्चरु सुदीप सुधूपफलार्घकैः । धवलमंगलगानखाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे ॥ · श्री पभादिवीरान्तेभ्यो ऽनपदप्राप्तये अन्यं निर्वपामीति स्वाहा । उत्कृष्ट वर्णन व हेमरसाभिराम, देहप्रभावलय संग सलुप्तदीप्तिम् । धारां वृतस्य शुभगन्धगुणानुमेयां, वन्देऽर्हतां सुरभिसंस्तपनोपयुक्ताम् ॥ गाथा - जो घियचणवण्णदुइ जिणण्हावे धरि भाव । सो दुग्गयगड़ अवहर जम्मनदुक्कइपाइ ॥ अभिषेक मन्त्र में 'जलेनाभिपिचे' की जगह 'घृतेनाभिपिचे' पढें । इति घृत कलशाभिषेक | पीछे 'उदकचन्दनादि' बोल कर अर्ध चढाना चाहिये । लम्पूर्णशारदशशांकमरीचिजालस्यन्दैरिवात्मयशसामित्र सुप्रवाहैः क्षीरेजिनाः शुचितरैरभिषिच्यमानाः, सम्पाद - यन्तु मम चित्तसमीहितानि ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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