________________
२२२
जन पूजा पाठ सप्रह
कोई जय जय शब्द कर गम्भीर, जय जय जय हे श्री महावीर । जैनी जन पूजा रचत आन, कोई छन्न चवर के करत दान ।। जिसको जो मन इच्छा करन्त, मन बाछित फल पावे तुरन्त । जो करै वन्दना एक बार, सुख पुत्र लम्पदा हो अपार ।। जो तुम चरणो ले रखे प्रोत, ताको जग मे को सके जीत । है शुद्ध यहा का पवन नीर, जहा अति विचित्र सरिता गम्भीर ।। 'पूरणमल पूना रची सार, हो मूल लेउ सज्जन सुधार । मेरा हे शमशाबाद ग्राम, त्यकाल करुं प्रभु को प्रणाम ।।
पत्ता। श्रीवर्द्धमान तुम गुण निधान, उपना न बनी तुम चरण की। है चाह यही लित बनी रहै, अभिलाण तुम्हारे दर्शन की।
ॐ ही श्री दिनगाव महावीर जिनेन्द्राय जयमालार्घ निर्वपामोति स्वाहा । दोहा—अष्ट-कर्म के दहल को पूजा की विशाल ।
घढे सुने जो भाव से छूटे जग जाल ॥ सम्वत् जिन चौबीस सौ है वासठ की साल । एकादश कार्तिक बदी पूजा रची सम्हाल ॥
इत्याशीर्वाद ।
सदाचार - मानव जीवन राज्य है, मन उसका राजा है, इन्द्रियाँ उसकी सेना हैं, कषाय शत्रु है। यदि मन विवेकशील है तो इन्द्रियाँ मदा सचेत रह कर कषाय शत्रुओं को पराजित करती रहेंगी।
- 'वर्णी वाणी' से