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प्रेम
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टोक के चरणो का अर्घ
जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बरसावे । तुम चरणनि दरशन होत श्राकुलता जावै ॥ जहां छतरी बनी विशाल तहां अतिशय बहु भारी । हम पूजत मन वच काय तजि सशय सारी ॥ चांदनपुर के महावीर तोरी छवि प्यारी । प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ॥
टीक में स्थापित की महार घरभ्यो निर्वपामीति स्वाहा । टीले के अन्दर विराजमान समय का अर्घ टीले के अन्दर आप सोहें पदमासन । जहां चतुर निकाई देव वे जिन शासन ॥ नित पूजन करत तुम्हार कर मे ले झारी । हम हू वसु द्रव्य वनाय पूजे भरि थारी ॥ चांदनपुर के महावीर तोरी छवि प्यारी ।
प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ॥
ॐ श्री चंदनपुर महावीर जिनेन्द्राध टोते के भन्दर विराजमान समय का अर्धo P
पञ्चकल्याणक ।
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कुण्डलपुर नगर मफार त्रिशला उर आयो ।
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शुक्ल छट्टि अषाढ़ सुर आई रहन जु बरसायो || चांदन
श्री श्री महावीर जिनेन्द्राय श्रपा शुक्र छट्टि गर्भमत प्राप्ताय अ० १ ॥