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जन पूजा पाठ सग्रह
ॐ ही महारिपुयुद्धे जयदायकाय श्री आदि परमेश्वराय मधं निर्वपामीति स्वाहा ॥४३॥ * हीं महासमुद्र चलित बातमहादुर्जय भय विनाशकाय श्री जिनादि परमेश्वराय अर्घ ० ॥४४॥
ॐ हीं दग प्रकार ताप जलघराष्टादश कुप्ट सनिपात महद्रोग विनाशकाय परमकामदेवरूप प्रकटाय श्री जिनेश्वराय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४५ ॥
ॐ ही महाबन्धन आपाद कण्ठ पर्यन्त वैरिकृतोपद्रव भय विनाशकाय श्री आदि परमेश्वराय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४६॥
ॐ ही सिंह गजेन्द्र राक्षस भूत पिशाच शाकिनी रिपु परमोपद्रव भय विनाशकाय श्री जिनादि परमेश्वराय अर्घ निर्मपामीति स्वाहा ॥ ४५ ॥
ॐ ही पठक पाठक श्रोता पा श्रद्धावान मानतुझाचार्यादि समस्त जीप कल्याणदायक श्री आदि परमेश्वराय अचं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४८ ॥ वन सुगंध सु तन्दुल पुष्पकैःप्रवर मोदक दीपक धूपकः। फल नरैः परमात्म पदप्रदं, प्रवियजे श्रीआदि जिनेश्वरम् ॥ ॐ ही अष्ट चत्वारिंशत्कमलेभ्य पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला। श्लोक-प्रमाणद्वय कर्तारं स्यादस्ति वाद वेदकं ।
द्रव्यतत्व नयागार मादिदेवं नमाम्यहम् ॥
छन्द। आदि जिनेश्वर भोगागार, सर्व जीववर दया सुधारं । परमानन्द रमा सुखकन्दं, भव्य जीव हित करणममन्दं ॥२॥ परम पवित्र वंशवर मण्डन, दुःख दारिद्र काम बल खण्डन । वेद-कर्म दुजेय वल दण्डन, उज्ज्वल ध्यान प्रप्ति शुभ मण्डन ॥३॥ चतु अस्सीलक्षपूर्व जीवित पर, धनुष पञ्च शत मानस जिनवर । हेमवण रूपौध विमल कर, नगर अयोध्या स्थान व्रत धर ॥ ४॥