SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० जेन पूजा पाठ सग्रह - तिनके सुत थे परदेश मांहि, जिन अशुभ-कर्म काटे सु ताहि । जे रविव्रत पूजन करी सेठ, तो फल कर सबसे मई भेट ।। जिन-जिनने प्रभुकी शरण लीन, तिन ऋद्धि-सिद्धि पाई नवीन ।' जे रविव्रत पूजा करहि जेह, ते सुक्ख अनन्तानन्त लेय ।। धरणेन्द्र पद्मावती हुए सहाय, प्रभु भक्ति जान तत्काल जाय । पूजा विधान इहि विधि रचाय, मन वचन काय तीनों लगाय ।।. जो भक्ति भाव जैमाल गाय, सो नर सुख सम्पति अतुल पाय। वाजत मृदङ्ग वीनादि सार, गावत-नाचत नाना प्रकार ॥ तन नन नन नन ताल देत, सन नन नन तन सुर भरसु लेत।' ताई थेई थेई पग धरत जाय, छमछम छमछम धुघरू बजाय। , जे करहिं निरति इहि भांति-भांति, ते लहहि सुख्य शिवपुर सुनात ॥ दोहा-रविव्रत पूजा पार्श्व की, करै भविक जन कोय । सुख संपति इहि अब लहै, तुरत महासुख होय ॥ अडिल्ल-रविव्रत पार्श्व जिनेन्द्र पूज भवि भन धरै । भव-भव के आताप सकल छिन में टरें । होय सुरेन्द्र नरेन्द्र आदि पदवी लहैं। सुख-सम्पति सन्तान अटल लक्ष्मी फेर सर्व निधि पाय भक्ति अनुसरै । नाना विधि सुख भोग बहुरि शिव तियवरै ।। ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy