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जन पूजा पाठ सग्रह
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जल गन्धादिक अष्ट दरव ले, अर्घ बनावो भाई। नाचत गावत हर्ष भावलों, कञ्चन थार सराई ।। पा० ॐ ही श्री पाश्र्वनाप जिनेन्द्राय अनपंपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
गीति का छन्द । भल वचन काय विशुद्ध करिके पार्श्वनाथ सु पूजिये। जल आदि अर्थ बलाय भविजन भक्तिवन्त सु हूजिये । पूज पारसनाथ जिनवर सकल सुख दातारजी। ले करत हैं नर नार पूजा लहत सुक्ख अपारजी।
जयमाला, दोहा। यह जग में विख्यात है, पारसनाथ सहान । जिलगुणकी जयमालिका, भाषांकरों बखान॥ जय जय प्रणमों श्रीपादेव, इन्द्रादिक तिनकी करत सेव । जय जय सु बनारस जन्म लीन्ह, तिहुँ लोकवि उद्योत कीन । जय जिनके पितु श्री विश्वसेन, तिनके घर भये सुख चैन एन । जय वामादेवी मातु जान, तिनके उपजे पारस महान ॥ जय तीन लोक आनन्द देन, भविजन के दाता भये ऐन। . जय जिनने प्रभुको शरण लीन, तिलकी सहाय प्रभुजी सो कीन । जय नाग नागनी भये अधीन, प्रभु चरनन लाग रहे प्रवीन । तजके जु देह सो स्वर्ग जाय, धरणेन्द्र पद्मावती भये जाय । जे चोर अजना अधम जान, चोरी तज प्रभु को धरो ध्यान । जे मतिसागर इक सेठ जाल, जिन रविव्रत पूजा करी ठान ॥