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पाठ संद
भाषा दर्शन पाठ
प्रभु पतितपावन में अपावन, चरण आयो शरणजी । यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरणजी ॥ तुम ना पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकारजी । या बुद्धि सेती निज न जान्यो, भ्रमगिन्यो हितकारजी ॥ सव विकट वनमें करम वेरी, ज्ञान धन मेरो हो । तव इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फियो || धन घड़ीयो धन दिवसयो ही, धन जनम मेरो भयो । अव भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभुको लख लयो || छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासापै घरें । वसुप्रातिहार्य अनन्त गुण जुत, कोटि रवि छविको हरें ॥ मिट गयो तिमिर-मिध्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो । सो उर हरप ऐसो भयो, मनु रक चिंतामणि लयो । ाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुव चरणजी ।
८ त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरणजी ॥ वहीं सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथजी । जाच तुव भक्ति भव-भव, दीजिये शिवनाथजी ॥