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________________ जन पूजा पाठ मा १२९ अरु चापधर विद्यासुधर, तिरसूलधर सेवहिं सदा ॥ दुस-हरन आनन्द-भरन तारन,तरन चरन रसाल हैं। सुकुमाल गुनमनिमाल, उन्नत भालकी जयमाल हैं । चन्द घत्तानन्द। जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं । भवताप निकंदन. तनकनमंदन रहित सपंदन नयनधर।। छन्द बोटफ। जय केवल-भानु कलासदनं, भविकोक-विकाशन-कंजवनं । जगजीत-महा-रिपु-मोहहरं, रज ज्ञानहगांवर चरकरं ॥१॥ गर्गादिक मंगल मण्डित हो, दुःखदारिदको नित स्खण्डित हो। जगमाहिं तुमी सतपंडित हो, तुमही भवभाव विहंडित हो ॥२॥ हरिवंश सरोजनको रवि हो, बलवन्त महन्त तुमी कवि हो। लहि केवल धर्म प्रकाश कियो अवलों सोई मारगराजतियो ॥३॥ पुनि आपतने गुणमाहिं सही, सुरमन रहें जितने सवही । विनकी वनिता गुनगावत हैं, लयमाननिसों मन भावत हैं ॥ ४ ॥ पुनि नाचत रंग उसंग भरी तुद भक्ति विप पग एम धरी । झननं झननं झननं झननं, मुरलेत तहां तननं वननं ॥५॥ घननं घननं धन घण्ट बजे, हमदं हमदं मिरदंग सज। गगनांगन-गर्भगता-सुगता, ततता ततता अतता वितता ॥६॥ धृगतां धृगतां गति वाजत है, सुरताल रसाल जु छाजत है।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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