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अष्टकरम में एकलौ, ये दुष्ट महादुःख देत हो ।
जेन पूजा पाठ समूह
कबहूं इतर निगोद में मोकूं पटकत करत अचेत हो । म्हारी दीनतनी सुन वीनती ॥
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प्रभु कबहुँक पटक्या नरकमें, जठै जीव महादुःस पाय हो । नित उठि निरदई नारकी, जठ करत परस्पर घात हो || म्हारी० ॥ प्रभु नरकतणा दुःख अब कहूं, जठे करें परस्पर घात हो । कोइक वांध्यो संभसों, पापी दे मुद्गरकी मार हो | म्हारी० ॥ कोइक कार्टे करोंतसों, पापी अङ्गतणी दो फाड़ हो । प्रभु इह विधि दुःख भुगत्या घणा, फिर गति पाई तिर्यञ्श्व हो | म्हारी || हिरणा वकरा बाछड़ा पशु दीन गरीब अनाथ हो । प्रभु मैं ऊट वलद भैसा भयो, ज्यांपै लदियो भार अपार हो || म्हारी || नहि चाल्यो जठे गिर पस्यो, पापी दे सोटन की मार हो । प्रभु कोइयक पुण्य संजोगसू, मैं पायो स्वर्ग निवास हो || म्हारी० ॥ देवांगना संग रमि रह्यो, जठ भोगनिको परिताप हो ।
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प्रभु सग अप्सरा रमि रह्यो, कर कर अति अनुराग हो || म्हारी० ॥ कबहुँक नन्दन-वन विषे प्रभु, कबहुँक वन-गृह मांहि हो । प्रभु इह विधि काल गमायकै, फिर माला गई मुरझाय हो || म्हारी० देव विधी सब घट गई, फिर उपज्यो सोच अपार हो । सोच करत तन खिर पड्यो, फिर उपज्योगर्भमे जाय हो || म्हारी० ॥ प्रभु गर्भतणा दुःख अब कह, जाठै सकडाई की ठौर हो ।
हलन चलन नहि कर सक्यो, जठे सघन कीच घनघोर हो || म्हारी० ॥