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________________ न पूना पाठ सह मग्धरा इन्द। मन्नामान्ता। होवे सारी प्रजाको सुख बलयुत हो धर्मधारी नरेशा । होवे वर्षा समैप तिल भर न रहे व्याधियोंका अन्देशा ।। हो चौरी न जारी सुसमय बरत हो न दुष्काल भारी । सारे ही देश धार जिनवर-वृपको जो सदा सौख्यकारी ।। दोहा - घातिकर्म जिन नाश करि, पायो केवलराज । शांति करो सब जगतमें, वृपभादिक जिनराज ॥ शास्त्रों का हो पठन सुखदा लाभ सत्संगती का। सदवृत्तों का सुजस कहके, दोप ढांकू सभी का ॥ वोलं प्यारे वचन हितके, आप का रूप ध्याऊँ। ___सोलों सेॐ चरण जिनके मोक्ष जोलौं न पाऊँ । तव पद मेरे हिय में, मम हिय तेरे पुनीत चरणों में। तबलों लीन रहों प्रभु,जबलौं पाया न मुक्ति पद मैने । अक्षर पद मात्रासे दूषित जो कुछ कहा गया मुझसे। क्षमा करो प्रभु सोसव,करुणारि पुनि छुड़ाहुभव दुखसे॥ हे जगवन्धु जिनेश्वर ! पाऊँ,तव चरण शरण लिहारी। मरण समाधि सुदुर्लभ, कर्मोका क्षय सुवोध सुखकारी ।। पुप्पाजलि क्षेपण । आया।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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