SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन पूषा पाठ सह प्रभुजी इन्द्र धरणेन्द्रजी सब मिल गाय । प्रभु का गुणां को पार न पाइया । प्रभुजी थे छो जी अनन्ताजी गुणवान । थाने तो सुमऱ्या संकट परिहरे ॥ प्रभुजी थे छो जी साहिब तीनों लोकका । जिनराय मैं छू जी निपट अज्ञानी महाराज ॥ यो मन०॥ प्रभुजी थांका तो रूपजु निरखन कारणे।। सुरपति रचिया छै नयन हजार महाराज ॥ यो मन० ॥ प्रभुजी नरक लिगोदमें भव-भव में रुल्यो। जिनराज सहिया छै दुःख अपार महाराज ॥ यो मन० ॥ प्रभुजी अव तो शरणोजी थारो में लियो। किस विधि कर पार लगाशे महाराज ॥ यो मन० ॥ प्रभुजी म्हारौ तो मनड़ो थांमे घुल रह्यो।। ज्यों चकरी विच रेशम डोरी महाराज ॥ यो मन०॥ प्रभुजी तीन लोक में है जिन विम्ब । कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजस्यां ॥ प्रभुजी जल चन्दन अक्षत पुष्प नैवेद । दीप धूप फल अर्घ चढ़ाऊँ महाराज ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy