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पाँचवा सर्ग
पावस ने मधु जल सिंचित कर वसुधा की काया धो दी थी। हो गयी शरद् के धारण केउपयुक्त धरा की गोदी थी॥
अतएव शरद् के आते ही, निर्मल नदियों का नीर हुवा । उनकी उद्धतता शान्त हुई, एवं प्रवाह गम्भीर हुवा ।।
हो गया अगस्त्योदय नभ में रह नहीं पथों में पङ्क गया। हो गयीं दिशाएँ भी निर्मल, मेघों का भी आतङ्क गया ।
मिट गया तड़ागों का कल्मष, कमनीय कुमुद भी फूल चले। जिन कुमुद वनों में विहरण कर कलहंस विगत दुख भूल चले ।।
नव शरत्पूर्णिमा आते ही, सबको नूतन अनुभूति हुई । निज पूर्ण रुप में विकसित सी उस दिन सब प्रकृति विभूति हुई ।