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चौथा सर्ग
है सत्य वचन यह अक्षरशः, इसमें किंचित् सन्देह नहीं । उस सिद्ध शिला के राही से, पावन होगी यह गेह-मही ॥
अतएव ध्यान से गर्भवतीका हर कर्त्तव्य निभानो तुम । अनुकुल क्रियाओं को करनेमें मत आलस्य दिखानो तुम ।।
कारण, अब तक तुम जाया थीं, अब जननी-पद भी पाना है। इस अभिनव पद के योग्य अतः, अपने को तुम्हें बनाना है ।।
इस हेतु त्याग कर चिन्ता-भय, निश्चिन्त बनो, निर्भीक बनो । बन वीर-प्रसविनी वधुओं को, अनुपम आदर्श प्रतीक बनो ।
अब मुझे आज की परिषद् यह करना सत्वर ही भंग अभी। इससे न करूंगा बात अधिक, इस समय तुम्हारे संग अभी।