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( IV ) महाराज, महारानी, प्रजा, ऋतु आदि का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है। संवाद एवं कथोप कथन भी रोचक और मनोवैज्ञानिक हैं । तत्कालीन स्थिति का वर्णन करते हुये कवि पर देश के आधुनिक वातावरण का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहा। ___ ग्रन्थमाला की ओर से पहले स्व० मा० दरयाव सिंह जी सोधिया द्वारा लिखित 'श्रावक धर्म संग्रह' का दूसरा संस्करण और प्राचार्य दुर्ग देव कृत 'रिष्ट समुच्चय' का प्रो० नेमिचंद जी एम० ए० ज्योतिषाचार्य श्रारा द्वारा लिखित हिन्दी अनुवाद तथा सितम्बर १६५६ में श्री ज्ञान चंद्र जी 'स्वतन्त्र' सूरत की 'हम कैसे सुधरें ?' पुस्तिका प्रकाशित हो चुकी है। इनमें प्रथम ग्रन्थ में श्रावक धर्म का सांगोपांग वर्णन है। जिसे सोधिया जो ने गृहस्थ धर्म सम्बन्धी अनेक शास्त्रों का स्वाध्याय कर लिखा है । दूसरे ग्रन्थ 'रिष्ट सम्मुचय' में मरण संबन्धी शकुन व सूचनाएँ हैं, जो मरण की जानकारी और समाधि मरण के लिये उपयोगी हैं । तीसरी में नैतिक जीवन के सुधार की प्रेरणात्मक घटनाएँ हैं।
ग्रन्थ माला से इन तीनों ग्रन्थों के पहिले प्राचार्य योगीन्द्र देव की प्राकृत रचना 'श्रात्म दर्शन' का नाथूराम जी द्वारा रचित पद्यानुवाद और 'परमात्म छत्तीसी, लधु रचना प्रकाशित की गयी थी। ___ ग्रन्थ माला का उद्देश्य जैन धर्म के सिद्धान्तों का देश विदेश में प्रचार एवं प्रसार करना है । अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त के सिद्धान्तों को जानकर जनता सुख और शान्ति का अनुभव कर सके ऐसी सरल और आधुनिक शैली में लिखी गयी पुस्तकें हम चाहते हैं और चाहते हैं अभी तक प्रकाश में नहीं आया साहित्य, जो जैन वाङ मय का गौरव बढ़ाये । वर्तमान में आत्मबोध और नैतिक