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प्रकाशकीय वक्तव्य
जैन समाचार पत्रों में श्री कविवर 'सुवेश' की प्रकाशित नवीन - रचना 'परम ज्योति महावीर' नामक महाकाव्य के समाचार पढ़कर हमने 'सुधेश' जी को लिखा कि क्या वे अपने महाकाव्य को
इन्दौर की किसी
उन्होंने तुरन्त स्वी
- ग्रन्थमाला की ओर से प्रकाशित कराना चाहते हैं कार कर लिया और बड़े ही निस्पृह भाव से अपनी महाकृति देखने मेज - दी | मैंने और श्री जवरचंद फूलचंद गोधा जैन ग्रन्थमाला इन्दौर के ट्रष्टी श्री जैन रत्न सेठ गुलाब चंद जी टोंग्या और श्री सेठ देव कुमार सिंह जी कासलीवाल एम० ए० ने उक्त महाकाव्य को पढ़ा । ग्रन्थमाला के अध्यक्ष श्री सेठ फूलचंद जी गोधा की सम्मति से ट्रष्ट कमेटी की -बैठक बुलाकर उक्त रचना प्रकाशित करना निश्चित कर लिया गया और छपाने का सब भार 'सुधेश' जी ने अपने ऊपर ले लिया । श्राज यह महत्व पूर्ण कृति पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए हमें बड़ा हर्ष हो रहा है ।
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'परम ज्योति महावीर' वास्तव में महाकाव्य है । इसमें महाकाव्य लक्षण और गुण तो पाये ही जाते हैं, पर अभी तक भगवान महावीर के जीवन सम्बन्धी जो ग्रन्थ प्रकाशित हुये हैं, उनमें यह अपना अपूर्व और विशिष्ट स्थान रखता है । 'सुधेश' जी ने इसे गम्भीर और खोज पूर्ण अध्ययन करके लिखा है। इसकी रचना शैली और नैसर्गिक कवित्व से आकृष्ट होकर ही यह शीघ्र प्रकाशित किया गया है ।
भगवान महावीर के गर्भ, जन्म, तप, शान और मोक्ष इन पाँचों कल्याणकों का क्रमशः घटना रूप में विवेचन करते हुये कवि ने नगर,