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यह युग का अन्तिम तीर्थंकर, सब जगती इसको पूजेगी । श्रौ, कीर्ति कोकिला तो इसकी, युग युग तक जग में कूजेगी ॥
तव सखे ! तुम 'कुण्ड ग्राम, - की ओर प्रयाण करो सत्वर । जा वहाँ रत्न बरसाओ नित 'सिद्धार्थ, नृपति के प्राङ्गण पर ||
जिससे जिनवर का जन्म निकट, समझे सारा संसार वहाँ I हर व्यक्ति जान ले तीर्थंकर, का होना है अवतार यहाँ ||
परम ज्योति महाबीर
अब गमन करो, शुभ कार्यों में— देरी उपयुक्त नहीं होती । इन कल्प पादपों से ले लो, मरकत, माणिक, मँगा मोती ॥,
इन शब्दों पूर्वक सुरपति ने; पूरे अपने उद्गार किये } श्रौ, 'एवमस्तु' कह धनपति ने सम्पूर्ण वचन स्वीकार किये ॥