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कर्मठता,
तव कार्य कुशलता, नैतिकता पर विश्वास मुझे । श्रतएव कार्य यह तुमसे ही, करवाने का उल्लास मुझे ||
श्री, सबको ज्ञात तुम्हारी निज,
',
कर्त्तव्य पालने की शैली । बस, इसी हेतु तव कीर्त्ति-कलाभी दशों दिशाओं में फैली ॥
इसके -
एवं है तुममें हो सम्पादन की भी शक्ति सभी । इसके अतिरिक्त अबाधित है, तव धर्म - - भावना भक्ति सभी ॥
अतएव अधिक दिखता है कोई
परम ज्योति महावीर
समझाने में,
सार नहीं |
को,
आशा है, मेरे वचनों तुम समझोगे गुरु भार नहीं ||
केवल इतना ही नहीं, अपितु - हो मेरे तुम्हीं प्रधान सखा ।
हर समय तुम्हां ने मेरी हर
चिन्ता हरने का ध्यान रखा ||