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तेईसौं सर्ग
बारह वर्षों में जब अकालका पूर्णतया अवसान हुवा । तब जैन संघ का फिर उत्तर भारत को शुभ प्रस्थान हुवा ॥
श्रा यहाँ उन्होंने देखा अब, शिथिलित हो मुनि श्री हीन हुये। कुछ श्वेत वसन भी धारण कर श्वेताम्बर साधु नवीन हुये ॥
पश्चात् हुये मुनि एकादश, एकादश अंगों के शानी । जो दश पूर्वो के धारक थे थे सच्चे धार्मिक सेनानी ।।
ये वर्ष एक सौ तेरासीतक करते रहे प्रचार अभय । फिर पाँच मुनीन्द्रों ने दो सौ श्रौ' बीस वर्ष के दीर्घ समय
तक सुस्थिर ग्यारह अङ्ग रखे, फिर पॉच मुनीश्वर और हुये । सौ अधिक अठारह वर्ष जो कि दे अङ्ग ज्ञान सिर मौर हुये ।