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परम ज्योति महावीर
फिर चले 'बनारस' से, पथ में. वे 'बालभिया' के पास थमे ।
'पोग्गल' ने दीक्षा ले ली यों मन में प्रभु के सिद्धान्त जमे ॥
फिर 'श्रालभिया' से 'राजगृही'की ओर पुण्य प्रस्थान किया।
औ 'यहाँ पहुँच 'किंक्रम' 'अर्जुन' 'मंकाती' को दीक्षा दान दिया ।
यों अहारहवाँ चतुर्मासयह 'राजगृही' में बिता दिया । श्राश्रो' देखें प्रभु ने विहार अब कहाँ कहाँ पर और किया ।