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इक्कीसवाँ सर्ग
'वाणिज्य ग्राम' श्रा पूर्ण किये,
वर्षा के महिने चार वहीं । श्रौ' इस
सत्रहवें चतुर्मास -
में किया विशेष प्रचार वहीं ॥
थीं वहाँ जिसे
वे सब प्रभु ने
हिंसा को मिटा
जय ध्वजा वहाँ
फिर गये 'बनारस' को, पथ मेंशिवपुर का मार्ग बताते वे ।
हर मानव को
मानवता का -
पावनतम पाठ
सिखाते वे |
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शङ्काएँ जो
सुलझायीं थीं।
अहिंसा की
फहरायी थी ।
प्रभु में प्रति भक्ति दिखायी थी, राजा 'जितशत्रु' प्रतापी ने ।
उपदेश श्रवण कर पुण्य कर्म----- की शिक्षा ली हर पापी ने ॥
बहुतों ने अपने जीवन में धार्मिक सिद्धान्त उतारे थे । 'चुलनी' 'श्यामा' औौ' 'सुरादेव' 'धन्या' ने अबत धारे थे ||
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