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________________ ४ प्रभु के समीप जिनदीक्षा ले, मुनि कितने ही गुणवान हुये । कितनों ने श्रावक धर्म लिया, कितने ही श्रद्धावान हुये ॥ यों कर विहार 'वैशाली' में, चौदहवाँ वर्षावास किया । प्रति दिवस वहाँ की जनता ने, उपदेश श्रवणं सोल्लास किया || पश्चात् वहाँ से 'वत्स भूमि' - की ओर पुनीत विहार किया । पथ में अनेक ही नगरों में, ग्रामों में धर्म प्रचार किया || परम ज्योति महावीर 'कौशाम्बी' यों क्रमशः उनने नगरी में पहुँच प्रवेश किया । नृप ने चलने को दर्शनार्थ, निज जनता को आदेश दिया ।। 'उदयन' की बुआ 'जयन्ती' भी, आयीं उन सबके साथ वहाँ । उस वृहत्सभा में सदुपदेश, देते थे त्रिभुवन नाथ जहाँ ||
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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