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प्रभु के समीप जिनदीक्षा ले, मुनि कितने ही गुणवान हुये । कितनों ने श्रावक धर्म लिया, कितने ही श्रद्धावान हुये ॥
यों कर विहार 'वैशाली' में, चौदहवाँ वर्षावास किया ।
प्रति दिवस वहाँ की जनता ने, उपदेश श्रवणं सोल्लास किया ||
पश्चात् वहाँ से 'वत्स भूमि' - की ओर पुनीत विहार किया । पथ में अनेक ही नगरों में, ग्रामों में धर्म प्रचार किया ||
परम ज्योति महावीर
'कौशाम्बी'
यों क्रमशः उनने नगरी में पहुँच प्रवेश किया ।
नृप
ने चलने को दर्शनार्थ, निज जनता को आदेश दिया ।।
'उदयन' की बुआ 'जयन्ती' भी, आयीं उन सबके साथ वहाँ । उस वृहत्सभा में सदुपदेश, देते थे त्रिभुवन नाथ जहाँ ||