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जब
मरा कभी तो नर्क गया,
है जहाँ कहीं पर क्षेम नहीं शत्रु शत्रु ही दिखते हैं, करता है कोई प्रेम नहीं ॥
सब
असमय में मरण न होने से मिलता दुख से परित्राण नहीं | श्रीजीवन सहने पड़ते दुख, होता कदापि कल्याण नहीं || "
पशु और नरक के यों सर्व प्रथम जग
कष्ट कहे
त्राता ने ।
मानव-पर्याय-विषय में
अव
बतलाया यों उन ज्ञाता ने ||
परम ज्योति महावीर
-X.