________________
४६२
परम ज्योति महावीर अब 'आर्य व्यक्त' को सम्बोधितकर बोले वे जिनराज अहो । "क्या सिवा ब्रह्म के सब में ही, शङ्का तुमको द्विजराज ! कहो ?" .
यह सुनकर बोले 'आर्य व्यक्त' "हे धर्म-राज्य-सम्राट! कहीं। सत् कहा है और असत्, वर्णित है विश्व विराट कहीं ॥
वास्तव में जग सत् या कि असत्, यह सुनने की अभिलाषा है। कारण, हर भ्रम तम हरने में, निष्णात आपकी भाषा है।"
यह सुन कर प्रभु ने कहा-"स्वप्नसम समझे हो तुम लोक सभी । ब्रह्मातिरिक्त सब द्रव्यों को, तुम रहे असत्य विलोक अभी ।
पर यह 'स्वप्नोपं वै सकलं' पद तो कोई विधि वाक्य नहीं । उपदेश-वाक्य है उन्हें, जिन्हेंजग से होता वैराग्य नहीं ॥