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अठारहवाँ सर्ग
इन ग्यारह में श्री 'इन्द्रभूति' का होता सर्वाधिक श्रादर । जो वहाँ पधारे थे 'गोवरपुर' से आमन्त्रित हो सादर ॥
माना करते थे पाँच शतकचेले अपना आदर्श इन्हें । औ' जाने कितनों को लौटा
देना पड़ता प्रतिवर्ष इन्हें ।। श्री 'अग्निभूति' थे इनके हीभ्राता, जो शिक्षा देते थे।
औ' छात्र पाँच.सौ इनसे भी, वेदों की शिक्षा लेते थे ।
थे अनुज इन्हीं के 'वायुभूति' था इनका भी उद्देश्य यही । विद्यार्थी पाँच शतक इनके
मुख से सुनते उपदेश वही ॥ 'कोल्लाग'-निवासी विप्र 'व्यक्त' थे व्यक्त जिन्हें द्विज धर्म सभी । औ' शिष्य पाँच स । इनसे भी थे सीख रहे द्विज कर्म सभी ॥