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हाँस
ग्वाले ने दुख दे हर्ष किया, प्रभु ने दुख सह न विषाद किया । उसने दुख देने में, प्रभु ने -- सहने में नहीं प्रमाद किया ||
प्रभु बारह
कष्टों को
जितने भी सत्र में चुप
ग्वाले ने अति निर्ममता की, पर जमे रहे वे समता से । उत्तम जन डिगते नहीं कभी म की अधमता से ||
वर्षों से ऐसे,
सहते आये थे ।
थे उपसर्ग हुये,
रहते श्राये थे ।
गत उपसर्गों सम इसको भी उनने समता से सहन किया । ग्वाले के जाने पर उठकर, 'मध्यमा' ग्राम को गमन किया || परीषद
'
इतने दिन सहे भेले उपसर्ग महान औ' एक दृष्टि से ही देखे,
सभी ।
सम्मान सभी अपमान सभी ॥