________________
परम ज्योति महावीर
जो यत्न किये, सब विफल रहे, यह देख नरेश हताश हुये । जो श्राशावादी श्रावक थे, वे भी अब पूर्ण निराश हुये ॥
था नहीं अभिग्रह विदित हुवा, पञ्चम भी मास व्यतीत हुवा, छठवाँ भी क्रमशः बीत चला,
पर कोई गृह न पुनीत हुवा ।। श्राश्रो, अब उससे परिचित हों, जो बनने वाला दाता है। अब यहाँ उसी का लघु परिचय, इस समय कराया जाता है ।।
श्री 'वृषभसेन' के यहाँ क्रीत---- 'चन्दना' नाम की दासी थी। जो 'चेटक' नृप की कन्या थी, छवि में साक्षात् रमा सी थी॥
पर थी अभाग्य से पड़ी हुई, माँ और पिता से दूर यहाँ । उन उक्त श्रेष्ठि की गृहणी का शासन रहता था क्रूर जहाँ ।।