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सतरहवाँ सर्ग
श्राहार हेतु बिनती
करते
थे 'वैशाली' के श्रेष्ठि प्रमुख |
पानी से
विमुख ||
पर 'वीर' अन्न श्रौ' रहते थे प्रतिदिन पूर्ण
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इससे अनुमान किया, मासिक
तप है, इस कारण मूँद नयन । ये ध्यानारूढ़ सदा रद्दकर, करते रहते हैं श्रत्म मनन ||
सम्भवतः अब ये एक मासउपरान्त ध्यान यह त्यागेंगे । बस, तभी उसी दिन व मेरेये भाग्य कदाचित् जागेंगे ||
पर मास समाप्त हुवा, फिर भी प्रभु ने पुर को न प्रयाण किया । रह निराहार ही ध्यान मग्न उनने अपना कल्याण किया ||
की श्रतः कल्पना अब उनने --- होगा
दो
द्वैमासिक लगा ध्यान । मास श्रनन्तर पर उनको मिथ्या यह भी अनुमान लगा ।।
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