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सोलहवाँ सर्ग
औ, अपनी माया को समेट, स्वयमेव शान्त वह अमर हुवा । इस अग्नि परीक्षा में तप कर प्रभु-तेज और भी प्रखर हुवा ।।
तदनन्तर कर प्रस्थान वहाँसे 'वीर' 'नालुका' आये थे। कुछ रुक 'सुभोग' 'सुच्छेत्ता' कोही ओर स्वपाद बढ़ाये थे ।
फिर 'मलय' और फिर 'हत्थिसीस' फिर 'तोसलि 'जाकर भ्रमण किया । 'पश्चात् पहुँच 'सिद्धार्थ पुरी" कर ध्यान आत्म का मनन किया ।।
'बज ग्राम' गये फिर, उस सुरनेभी अब तक था सहगमन किया । सर्वत्र विध्न थे किये, जिन्हेंप्रभु ने था निर्भय सहन किया ।।
इससे अब हो प्रत्यक्ष प्रगट, प्रभु की महिमा का गान किया । बोला कि "श्रापकी दृढ़ता को मैने सम्यक् पहिचान लिया ।