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परम ज्योति महावीर वर्षागम देख किया अपनावह नवमा चातुर्मास वहीं ।
औ' कर्म निर्जरा हेतु किये, दुष्कर अनेक उपवास वहीं ।।
छह मास वहाँ रह 'आर्य' भूमिको पुनः प्रशस्त विहार किया। बन सका जहाँ तक उनसे निज, चेतन का रूप निखार लिया ।।
श्राओ, अब देखें यहाँ और, क्या क्या तप करते 'वीर' अभी । वे भावी अग्नि परीक्षाएँ, सहते किस भाँति सधीर सभी ॥