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परम ज्योति महावीर
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शूलों से रक्षा हेतु रस्त्रीं-- तक नहीं पादुका चरणों में । श्रौ' गिना उन्होंने छतरी तक-- को भी बाधक उपकरणों में ।
वस्त्रों की कौन कहे ? तन पर, तागा तक नहीं बचाया था। हो जात रूप निज काया को, उनने निम्रन्थ बनाया था ।
कोई न बनाया गुरु अपना,
औ' बने नहीं भी चेले वे । स्वयमेव बनाने को निज पथ, उद्यत हो गये अकेले वे ॥
चिमटा भी उनने लिया नहीं, बाँधा न कहीं मृग छाला भी। श्रौ' नहीं कण्ठ में डाली थी,
उनने रुद्राक्षी माला मी ॥ यों विधिवत् चौदह अन्तरङ्ग, दश वाह्य परिग्रह छोड़े थे। पश्चात् विनय से सिद्धों को, अपने दोनों कर जोड़े थे ।।