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तेरहवा सर्ग
वैराग्य आपका धन्य कि जो, है रहा किसी से स्नेह नहीं।
औ' आज रोकने पाता है, यह राज्य नहीं, यह गेह नहीं ॥
अतएव आपके दर्शन कर अति धन्य हमारे नेत्र हुये। देवों के द्वारा पूज्य सदाको कुण्ड ग्राम' के क्षेत्र हुये ।।
कथनीय नहीं वह शब्दों से, जो आज हमें श्रानन्द हुवा । हे ज्ञान सूर्य । तव दर्शन कर अज्ञान-निशाकर मन्द हुवा ।।
निश्चय तब धर्म-प्रचारण से, सारी जगती सुख पायेगी। हिंसा का पतझड़ बीतेगा, करुणा की मधु ऋतु प्रायेगी ।।
अत्यन्त मन्द हो जायेगा, पापों का भो व्यापार यहाँ। औ' श्रात्म धर्म हो जायेगा, हर आत्मा में साकार यहाँ।। २२