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परम ज्योति महावीर निज कन्या देना चाह रहे,
मको अगणित राजा रानी । अगणित कन्याएँ चाह रही, मैं बनूँ तुम्हारी पटरानी ॥
एवं सुख भोग गृहस्थी के, मुनि बनना रीति पुरानी भी। इससे न चाहिए तुमको अब, करना कुछ आनाकानी भी ॥
मैं चिर से प्राश लगाये हूँ, अतएव मुझे न निराश करो। परिणय की स्वीकृति दे बेटा ! पूरी मेरी अभिलाष करो ॥
यह बात मान लो तो मैं भी, तव जननी भक्ति सराहूँगी । जो तुम्हें रुचेगी उससे ही, मैं तुमको शीघ्र विवाहूँगी ॥
यों मैं निश्चित कर चुकी एक, कन्या अनुरूप तुम्हारे ही । गुण औ' स्वभाव सुन्दरता में, अभिराम अनूप तुम्हारे सी ॥